प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र
श्रीगुरुजी (हिंदी)   25-Oct-2017
श्री गुरुजी ने प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भी पत्र लिखा। वह अंग्रेजी में था। उसका हिन्दी अनुवाद नीचे दिया गया है :
वाराणसी
27-2-63
मान्यवर पंडित जी,
 
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान श्री पशुपतिनाथ के दर्शन एवं पूजन करने हेतु मैं काठमाण्डू गया था। उस समय महाराजाधिराज नेपाल नरेश तथा डा. तुलसी गिरि से साक्षात् एवं वार्तालाप करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ था। हमारी वार्ता मुक्त, अनौपचारिक व सौहार्दपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुई। मैंने अनुभव किया कि नेपाल के छोटे-बड़े सभी लोग भारत के लोगों के साथ अपने परम्परागत रक्त के घनिष्ठ संबंधों की अनुभूति करते हैं और यह भी अनुभव करते हैं कि दोनों देशों का भाग्य अभंग, अटूट एकता में अभिन्नरूप से निबध्द है। दोनों देशों की नियति एक ही है।
 
दोनों देशों के बीच कतिपय छोटी-मोटी भ्रान्त धारणाएँ विद्यमान हैं। परन्तु मुझे लगता है कि समुचित दृष्टिकोण अपनाने से उन्हें सरलता से निरस्त किया जा सकता है। यदि हम तात्विक भूमिका एवं काल्पनिक व्यवहार को त्याग कर यथार्थवादी भूमिका का अवलम्बन करते हैं, तो इस मामले में जो भी कठिनाइयाँ एवं बाधाएँ प्रतीत होती हैं, उन सब पर आसानी से विजय पा सकते हैं।
 
ऐसा प्रतीत होता है कि अपने अधिकारियों से, जिनमें अपने दूतावास के अधिकारी भी सम्मिलित हैं, जो भी कार्य अपेक्षित थे, उन्हें ठीक से सम्पन्न करने में वे असमर्थ रहे हैं। सम्प्रति विद्यमान अधिकारियों के विषय में तो मैं अधिक कुछ कह नहीं सकता, परन्तु मुझे लगता है कि नेपाल, उसकी सरकार एवं जनता से अपने संबंधों में प्रभावी सुधार लाने की दृष्टि से अपनी नीति व व्यवहार में कुछ सुपरिणामकारी परिवर्तन की आवश्यकता है।
 
मुझे ऐसा भी दिखाई देता है कि नेपाली शासन का चीन के प्रति प्रेम अल्पमात्रा में ही है और अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्यवादी कम्युनिजम के प्रति तो और भी कम है। इस कारण चीनी साम्राज्यवाद के विरोध में नेपाल एक प्रबल शक्ति के रूप में परिणत होने की स्थिति में है। परन्तु हम भारतवासियों को उन्हें अनेक प्रकार से सहायता प्रदान करनी होगी। विशेषरूप से उनमें अपने उद्देश्यों एवं नीतियों के बारे में हम विश्वास निर्माण करें तथा अपने इस बंधु राष्ट्र की सार्वभौम स्वतंत्र प्रतिष्ठा को आश्वस्त करें जिससे कि वह अपनी शासन प्रणाली की संरचना करने में स्वतंत्र रह सके और प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य के जन्मसिध्द विशेषाधिकारों का निर्बाधा रूप से उपभोग कर सके।
 
कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी हैं जो मेरे ध्यान में आये। किन्तु उनके विषय में प्रत्यक्ष बातचीत करना ही उचित होगा। सम्भवतः मैं अपने विचारों व अनुमानों को इस प्रकार के पत्र में पूर्ण रूप से प्रकट करने में समर्थ न हो सकूँगा। फिर भी अपने प्रधानमंत्री को अपनी नेपाल यात्रा के दौरान प्राप्त अनुभवों से अवगत कराना मेरा कर्तव्य है, ऐसा मानकर ही मैंने यह पत्र लिखा है।
 
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि अपने गृहमंत्री शीघ्र ही नेपाल की सद्भावना यात्रा पर जा रहे हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह अपने मधावर व्यवहार एवं चातुर्य से भारत और नेपाल के बीच विद्यमान सभी भ्रान्त धारणाओं का निराकरण कर दोनों देशों के मध्य अपेक्षित मित्रता एवं सौहार्द निर्माण करने में सफल होंगे।
 
उड़ीसा प्रवास का कार्यक्रम पूर्ण कर मैं दि. 6-3-63 को नागपुर पहुँचूँगा। इस पत्र की प्राप्ति की सूचना यदि मिलती है तो मैं स्वयं को उपकृत अनुभव करूँगा। श्रध्दा एवं आदर
सहित,
भवदीय
मा. स. गोलवलकर