तृतीय पत्र
श्रीगुरुजी (हिंदी)   25-Oct-2017
॥ श्री ॥
परम प्रिय आदरणीय बंधुगण
21 जून 1940 को परमपूजनीय डॉ. हेडगेवारजी का शरीर शांत हो गया और उनकी इच्छा के अनुसार सरसंघचालकपद का गुरुभार मेरे पर आ पड़ा। मैं तो कुछ भी जानता नही था। तो भी सब पुराने कार्यकर्ताओंने बडे प्रेम से सहकार्य किया, मार्गदर्शन किया और इतने दीर्घकाल तक लगभग 33 वर्ष मैं इस भार को वहन करता आया। अब भगवान की इच्छा दिखती है कि दूसरे योग्य व्यक्ति को यह दायित्व देकर, कार्य अधिक अच्छी प्रकार और अधिक द्रुत-गति से पूर्णता की ओर बढावें। और अब यह योजना हो रही है।
इस दीर्घ काल में मेरे स्वभाव-वैचित्र्य के कारण या अन्यान्य न्यूनताओं के दोषों के कारण अपने अनेक कार्यकर्ताओं को मानसिक दु:ख हुआ होगा। मैं सब से करबध्द क्षमा-याचना करता हूँ। अंत में श्रीसंत तुकारामजी का वचन उध्दृत कर रहा हूँ, जिससे सब भाव समझ में आ सकेंगे-
शेवटची विनवणी। संतजनीं परिसावी॥
विसर तो न पडावा । माझा देव तुम्हांसी॥
आता फार बोलों कायी। अवघें पायीं विदित॥
तुका म्हणे पडतों पाया। करा छाया कृपेची॥