पराजित का तत्त्वज्ञान
श्रीगुरुजी (हिंदी)   26-Oct-2017
कोई बात कितनी भी ठीक हो; पर यदि उसे कहने वाला दुर्बल है, तो उसकी बात नहीं सुनी जाती। इस संबंधा में श्री गुरुजी ने एक बार जापान का यह प्रसंग सुनाया। भारत के प्रसिध्द कवि एवं साहित्यकार रविन्द्रनाथ टैगोर एक बार जापान के प्रवास पर गये। वहाँ उन्हें एक विश्वविद्यालय के छात्रों के सम्मुख भारतीय विचार एवं तत्त्वज्ञान की श्रेष्ठता पर भाषण देना था। विश्वविद्यालय के प्रबन्धकों ने सभी छात्रों को कार्यक्रम में आने की सूचना दी थी। छात्रावास भी वहीं आसपास ही थे; पर आश्चर्य कि एक भी छात्र भाषण सुनने के लिए वहाँ नहीं आया। कार्यक्रम स्थल पर केवल रविन्द्रनाथ टैगोर और आयोजक ही उपस्थित थे। बाद में जब छात्रों से न आने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट उत्तार दिया - गुलाम देश के नागरिक से हम उनके विचार की श्रेष्ठता की बात कैसे सुन सकते हैं। यदि उनका तत्त्वज्ञान श्रेष्ठ है, तो वे अपने देश को स्वतन्त्र क्यों नहीं करा लेते ?
 
सजगता का महत्त्व
यदि कोई व्यक्ति दुर्बल हो, तो आसपास के लोग उसे बिना बात ही परेशान करने लगते हैं। यही बात किसी कमजोर समाज या देश के लिए भी सत्य है। इसलिए हमें सदा सावधान और संगठित रहना चाहिए। संघ अपनी शाखाओं के माध्यम से यही कार्य कर रहा है। इसे समझाने के लिए श्री गुरुजी एक प्रसंग सुनाते थे। जब वे छात्रावास में रहते थे, तो अपने कमरे से बाहर जाते समय वे कमरे में ताला डाल देते थे। एक बार उनके साथियों ने इस बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा - मेरे कमरे में कोई ऐसी कीमती वस्तु नहीं है, जिसके चुराये जाने का खतरा हो। फिर आप सब मित्रों पर भी मुझे पूरा विश्वास है। लेकिन यदि कमरा खुला रहे, तो अच्छे व्यक्ति के मन में भी कभी-कभी बुरे विचार आ जाते हैं। इसलिए मैं ऐसा करता हूँ। ताला चोरों के लिए नहीं है। वह तो इसलिए है कि कहीं सज्जन ही चोर न बन जायें। इस उदाहरण को सुनाकर श्री गुरुजी बताते थे कि जिन देशों की सीमाओं पर सुरक्षा का उचित प्रबन्ध नहीं होता, उनकी धरती पर पड़ोसी देश कब्जा कर लेते हैं। श्री गुरुजी की चेतावनी शत-प्रतिशत सत्य सिध्द हुई है। हमारी दुर्बलता के कारण चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने हमारी लाखों वर्ग किलोमीटर भूमि दबा रखी है;
पर हम उदासीन होकर सब चुपचाप सह रहे हैं।

अपने देश को न भूलें
कुछ लोग वैश्विक समस्याओं के समाधान में हर समय स्वयं को व्यस्त रखते हैं। ऐसे लोगों से श्री गुरुजी कहते थे कि विश्व के साथ-साथ अपने देश के बारे में भी सोचना चाहिए। इसे समझाने के लिए वे एक कथा सुनाते थे। खगोल-शास्त्र के एक प्रसिध्द विद्वान थे। प्राय: रात में वे चन्द्रमा, तारों आदि का अध्ययन करते रहते थे। एक बार वे आकाश की ओर देखते हुए चल रहे थे और साथ में नक्षत्रों का अध्ययन भी कर रहे थे। अचानक चलते-चलते वे एक सूखे कुएँ में गिर गये। चोट और दर्द से कराहते हुए वे सहायता की पुकार करने लगे। कुछ देर बाद वहाँ से गुजर रहे लोगों ने उनकी आवाज सुनी, तो उन्हें निकाला। दुर्घटना का कारण पूछने पर वे बोले - मैं आकाश की ओर देखने में इतना तल्लीन था कि धरती का ध्यान ही नहीं रहा। ऐसे ही जो लोग दुनिया भर की चिन्ता में व्यस्त रहते हैं, यदि वे अपने देश की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देंगे, तो उनका हाल भी उन्हीं विद्वान की तरह होगा।
 
बालपन के संस्कारों का महत्त्व
आजकल इतिहास को ठीक से लिखने का प्रयास कुछ देशभक्त विद्वानों द्वारा हो रहा है। इसका विरोध वे लोग कर रहे हैं, जो भारत को अनपढ़ और अंधविश्वासी लोगों का देश मानते हैं। जबकि सच यह है कि भारत देश लाखों वर्ष पुराना है। हमारा इतिहास गौरवशाली रहा है। लगभग एक हजार साल के जिस कालखंड को पराजय का बताया जाता है, वह भी गुलामी का नहीं अपितु सतत् संघर्ष का कालखंड है। श्री गुरुजी की मान्यता थी कि इतिहास को इसी दृष्टिकोण से पढ़ाना चाहिए। इससे नयी पीढ़ी के मन में देश के प्रति गौरव का भाव जाग्रत होगा। पर यदि उन्हें पराजय और गुलामी जैसी गलत बातें ही पढ़ाई जाएँगी, तो उनके मन में हीनभाव पैदा होगा। अर्थात् वे छोटी अवस्था से ही बच्चों के मन में सही संस्कार डालने के समर्थक थे। इस संबंध में वे एक कथा सुनाते थे। एक राजा के दरबार में पक्षी बेचने वाला व्यापारी आया। उसके पास देश-विदेश के बहुमूल्य पक्षी थे। उनमें से दो तोते तो बहुत ही बुध्दिमान थे। व्यापारी ने बताया कि ये दोनों जो भी सुनते हैं, उसे शीघ्र ही याद कर लेते हैं। राजा ने दोनों तोते खरीद लिये। एक उसने अपने द्वारपाल को तथा दूसरा अपने पुरोहित को दे दिया। कुछ समय बाद राजा को उन दोनों तोतों की याद आयी। उसने उन्हें मँगवाया, तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। एक तोता सुन्दर श्लोक और हरिनाम बोल रहा था, जबकि दूसरा गन्दी गालियाँ बक रहा था। राजा ने पहले तोते से इसका कारण पूछा। उसने बताया कि मैं पुरोहित जी के घर पर रहा। वे अपने पास आने वालों को अच्छे श्लोक और भगवान की कथा सुनाते थे, इस कारण मैं भी वही सब सीख गया। मेरे साथी को आपने द्वारपाल को दिया था। वह आने वालों से सदा गाली-गलौच से बात करता था, इसलिए उसे वही चीजें याद हो गयीं। यह दोष मेरे साथी तोते का नहीं अपितु उस द्वारपाल का है, जिसके पास उसे रखा गया था। स्पष्ट है कि संस्कारों का बहुत महत्त्व है। जो बात बचपन में मन मस्तिष्क में बैठा दी जाये, वह लम्बे समय तक याद रहती है। इसीलिए बच्चों को सही इतिहास ही पढ़ाया जाना चाहिए।