संकटों का भी स्वागत
श्रीगुरुजी (हिंदी)   26-Oct-2017
संघ-कार्य करने वालों को अनेक बाधाओं और संकटों का सामना करना पड़ता है। लोग तरह-तरह से उन्हें परेशान करते हैं; पर जिसके मन में अपने लक्ष्य के प्रति अविचल श्रध्दा रहती है, वह इन सब पर विजय पाकर सफल होता है। संत तुकाराम जी हर समय भगवान के ध्यान में डूबे रहते थे। लोग इस कारण उनकी बहुत निन्दा करते थे और उनके रास्ते पर काँटे बिखेर देते थे। उनकी झगड़ालू पत्नी भी उन्हें गालियाँ देती रहती थी। उनकी दुकान चौपट हो गयी; पर तुकाराम जी विचलित नहीं हुए। वे इन संकटों के लिए भी ईश्वर को धन्यवाद ही देते थे। ऐसा कहते हैं कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उनके लिए विमान भेजा और वे इसी शरीर के साथ स्वर्ग चले गये।
 
झूठ और सच
श्री गुरुजी की मान्यता थी कि यदि नयी पीढ़ी को अपने देश का गलत इतिहास पढ़ाया जाएगा, तो वे सदा भ्रमित ही रहेंगे। गलत बात को भी बार-बार सुनने से कैसे भ्रम उत्पन्न होते हैं, इस बारे में वे यह कथा सुनाते थे। एक सरल स्वभाव के ग्रामीण ने बाजार से एक बकरी खरीदी। उसने सोचा था कि इस पर खर्च तो कुछ होगा नहीं; पर मेरे छोटे बच्चों को पीने के लिए दूध मिलने लगेगा। इसी सोच में खुशी-खुशी वह बकरी को कंधे पर लिये घर जा रहा था। रास्ते में उसे तीन ठग मिल गये। उन्होंने उसे मूर्ख बनाकर बकरी हड़पने की योजना बनायी और उसके गाँव के रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर खड़े हो गये। जब पहले ठग को वह ग्रामीण मिला, तो ठग बोला - भैया, इस कुतिया को क्यों पीठ पर उठाये ले जा रहे हो ? ग्रामीण ने उसकी ओर उपेक्षा से देखकर कहा - अपनी ऑंखों का इलाज करा लो। यह कुतिया नहीं, बकरी है। इसे मैंने आज ही बाजार से खरीदा है। ठग हँसा और बोला - मेरी ऑंखें तो ठीक हैं, पर गड़बड़ तुम्हारी ऑंखों में लगती है। खैर, मुझे क्या फर्क पड़ता है। तुम जानो और तुम्हारी कुतिया। ग्रामीण थोड़ी दूर और चला कि दूसरा ठग मिल गया। उसने भी यही बात कही - क्यों भाई, कुतिया को कंधो पर लादकर क्यों अपनी हँसी करा रहे हो। इसे फेंक क्यों नहीं देते ? अब ग्रामीण के मन में संदेह पैदा हो गया। उसने बकरी को कंधो से उतारा और उलट-पलटकर देखा। पर वह थी तो बकरी ही। इसलिए वह फिर अपने रास्ते पर चल पड़ा। थोड़ी दूरी पर तीसरा ठग भी मिल गया। उसने बड़ी नम्रता से कहा - भाई, आप शक्ल-सूरत और कपड़ों से तो भले आदमी लगते हैं; फिर कंधो पर कुतिया क्यों लिये जा रहे हैं ? ग्रामीण को गुस्सा आ गया। वह बोला - तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, जो इस बकरी को कुतिया बता रहे हो ? ठग बोला - तुम मुझे चाहे जो कहो; पर गाँव में जाने पर लोग जब हँसेंगे और तुम्हारा दिमाग खराब बतायेंगे, तो मुझे दोष मत देना। जब एक के बाद एक तीन लोगों ने लगातार एक जैसी ही बात कही, तो ग्रामीण को भरोसा हो गया कि उसे किसी ने मूर्ख बनाकर यह कुतिया दे दी है। उसने बकरी को वहीं फेंक दिया। ठग तो इसी प्रतीक्षा में थे। उन्होंने बकरी को उठाया और चलते बने। यह कथा बताती है कि गलत बात को बार-बार बताने से बड़ा आदमी भी भ्रम में पड़ जाता है, तो फिर छोटे बच्चों की तो बात ही क्या है ? इसलिए बच्चों को शुरू से ठीक इतिहास पढ़ाया जाना आवश्यक है।
 
प्रश्न अनेक : उत्तर एक
आज भारत में जाति, भाषा, प्रान्तभेद जैसी अनेक समस्याएँ हैं, जिनके कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त रहता है। हिन्दुओं को इनके कारण से भारत में तथा विश्व में भी अपमान सहना पड़ता है। श्री गुरुजी हिन्दुओं के प्रबल संगठन को ऐसी सब बीमारियों की एकमात्र और अचूक दवा बताते थे। इस संबंध में वे एक रोचक पहेली की चर्चा करते थे। एक राजा ने अपने दरबार में एक पहेली पूछते हुए कहा कि प्रश्न तीन हैं; पर इनका उत्तार एक ही है। प्रश्न हैं - घोड़ा अड़ा क्यों, पान सड़ा क्यों और रोटी जली क्यों ? जब कोई इसका उत्तार न दे सका, तो राजा ने सबसे बुध्दिमान दरबारी की ओर देखा। उसने कहा - महाराज, इसका उत्तर है : फेरा न था। अर्थात घोड़े के पैरों की मालिश जरूरी है। ऐसे ही पान और रोटी को यदि उलट-पलट नहीं करेंगे, तो पान सड़ जायेगा और रोटी जल जायेगी। इसी प्रकार भारत की सभी समस्याओं का एकमात्र निदान हिन्दुओं का प्रबल संगठन है।
 
स्वयं को पहचानें
हिन्दू समाज विश्व का सबसे शक्तिशाली और बुध्दिमान समाज है; पर वह आत्मविस्मृति की बीमारी से ग्रस्त है। इसी कारण विदेशी एवं विधर्मी उस पर रौब दिखाते हैं। ऐसा इतिहास में पहले भी कई बार हो चुका है। लंका जाने के लिए जब कोई भी समुद्र लाँघने का साहस नहीं कर पा रहा था। तब जाम्बवन्त ने हनुमान को उनकी शक्ति की याद दिलायी। ऐसा होते ही उन्होंने अपने शरीर को बढ़ा लिया और समुद्र लाँघकर सीता माता का पता लगाया। इसी प्रकार महाभारत युध्द के समय अर्जुन भी अपने कर्तव्य को भूल गया था। पर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे आत्मज्ञान कराया, तो वह रण में उतरा और विजय प्राप्त की। एक जंगल में एक शेर का बच्चा अपने परिवार से बिछुड़ गया। उसे एक गडरिये ने देखा, तो अपने घर उठा लाया। उसकी भेड़ों के बीच वह भी पलने लगा। उसकी आदतें भी उन जैसी ही हो गयीं। वह कुत्तो, भेड़िये आदि को देखकर डरने लगा। एक दिन एक शेर ने भेड़ों के झुंड पर हमला बोला और दो भेड़ों को उठाकर ले जाने लगा। तभी उसकी नजर उस शेर के बच्चे पर पड़ी। वह भी अन्य भेड़ों के साथ डरकर भाग रहा था। शेर ने उसे पकड़ लिया और उससे पूछा कि तू कौन है ? वह बच्चा तो डर रहा था। उसके मुँह से आवाज ही नहीं निकली। तब शेर उसे नदी के पास लाया और कहा - देख, तेरी और मेरी सूरत एक जैसी है। तू भेड़ का नहीं, शेर का बच्चा है। गरदन उठा, सीना फुला और मुँह खोलकर दहाड़ मार। जैसे ही शेर के बच्चे ने ऐसा किया, तो उसकी आवाज से जंगल गूँज उठा। अब उसे अपनी वास्तविकता समझ में आयी। उसने भेड़ों का साथ छोड़ा और शेरों के साथ रहने लगा। यही स्थिति हिन्दू समाज की है। उसे अपनी शक्ति और गौरव का पता ही नहीं है। इस आत्मविस्मृति को मिटाकर उसे अपनी असली स्थिति की याद दिलाने का प्रयास ही संघ कर रहा है।