अव्युक्तम
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
आश्रम में आते ही दीपावली आयी। काली पूजा का वातावरण बनने लगा। बाबा जी का आदेश हुआ कि पूजा की व्यवस्था श्री निरामयानन्द जी द्वारा सम्पन्न हो। पूजा कार्य की सहायता के लिए नवागत साधक श्री माधव राव की नियुक्ति हुई। श्री निरामयानन्द जी की ओर पूजा-अर्चना, और अन्य आनुषंगिक सेवा कार्य श्री माधव राव को सौंप कर श्री बाबा जी ने काली पूजा की व्यवस्था कर दी। सारगाछी में नवम्बर की कड़ाके की ठंड में सारी रात बराबर काम करते रहना आसान नहीं था। उस पूजा की रात में श्री माधव राव का कार्य था थालियाँ, कमण्डल, लोटे, झारियाँ, पंचारती, नीरांजन आदि पूजा में प्रयुक्त उपकरणों तथा बर्तन इत्यादि जैसे खाली मिलते जाएँ मांझना, साफ करना और जरूरत पड़ने पर पूजा के लिए देना। सारा कार्य उस नवागत साधक ने भली-भाँति तत्परता से किया। पूजा समाप्ति के पश्चात् प्रात:काल में ही बाबा जी ने श्री निरामयानन्द जी से पूजा के विषय में, प्रसाद वितरण तथा श्री माधव राव के कार्य के लिए पूछा। उन्होंने माधव राव के सम्बन्ध में अपने उद्गार इस प्रकार प्रकट किये, "अत्युत्तम! बहुत अच्छा। माधव राव ने अपना काम पूरे मनोयोग से किया। इतना स्वच्छ और व्यवस्थित काम मैं भी शायद ही कर पाता।" इस कथन पर प्रसन्न होकर श्री बाबा जी ने इच्छा प्रदर्शित की कि गोलवलकर उनकी व्यक्तिगत सेवा में रहेंगे। (दात्ये, हरि विनायक, वही, पृष्ठ 36)।
 
आश्रम में रहते हुए श्री माधव राव ने अपने केश और दाढ़ी बढ़ा ली थी जो उनके व्यक्तित्व की शोभा बढ़ा रहे थे। एक दिन श्री बाबा स्वामी अखण्डानन्द जी ने उनके बिखरे मुलायम बालों पर अपना स्नेहपूर्ण हाथ फेरते हुए कहा "यह बाल तुम्हें बहुत शोभा दे रहे हैं, देखना इन्हें कभी काटना नहीं।" अपने गुरु की इस इच्छा का श्री माधव जी ने आजीवन पालन किया। (भिशीकर, च.प., वही, पृष्ठ 26, दात्ये, हरि विनायक, वही, पृष्ठ 48)।