समान शत्रु-मित्र भाव
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में मातृभूमि की भक्ति के जागरण के साथ ही यह अनुभूति भी जगाना है कि एक माता के पुत्र के नाते हम सहस्रों वर्षों से एक परिवार के रूप में इस भूमि पर रहते आ रहे हैं। यहाँ हमने एक धर्म, एक संस्कृति तथा एक परम्परा विकसित की है। हम लोगों ने सुख-दु:ख तथा जय-पराजय का एक सा अनुभव किया है, जो एक इतिहास के रूप में हमारे सामने है। जो लोग हमारे सुख के लिए कारणीभूत हुए वे मित्र और जिन्होंने दु:ख दिया वे शत्रु, इस प्रकार जागतिक संदर्भ में हमारे शत्रु-मित्र भाव समान हैं। जिन लोगों ने भय अथवा प्रलोभन से आक्रमणकारियों की सहायता की, उनकी गुलामी स्वीकार की, मातृभूमि का विभाजन करने में जिन्हें आनन्द का अनुभव हुआ और जो आज भी दंगा-फसाद करने वाली मुस्लिम लीग को सब प्रकार की सहायता देते हैं, ऐसे लोगों को कुछ लोग भाई-भाई कहते हैं, इसलिए कोई कह सकता है कि समान अनुभूति कहां रही? परन्तु सच बात तो यह है नहीं। वस्तुतः किसी मोहल्ले में यदि कोई उपद्रवी गुण्डा हो तो भीरु लोग उसे ''भैया दादा'' कहते हैं और साहसी वीर पुरुष उसके मुँह पर सच बात कहने का साहस रखता है। अनुभूति दोनों की समान है। दोनों उसे गुण्डा मानते हैं। एक भीरुतावश ''दादा'' कहता है, तो दूसरा निर्भयता से गुण्डे को गुण्डा कहता है। जिस प्रकार हमारी अनुभूतियाँ समान हैं, उसी प्रकार हम सबका हित भी समान है। हमारी आदर्शों की परम्परा एक है। बलवान, विजयशाली तथा समृध्दिशाली बनने की हमारी आशा-आकांक्षा समान है। हमारा कर्तव्य है कि विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच अपने राष्ट्र को उत्तम स्थिति में खड़ा करें।