दीक्षा
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
स्वामी निरामयानन्द के अनुसार, "दोपहर के भोजन के उपरान्त माधव राव कभी लेटे नहीं, थोड़ा अवकाश पाते ही वह ग्रंथशाला में चले जाते थे और आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुशीलन में मग्न हो जाते थे।" स्वामी अखण्डानन्द जी का स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरता जा रहा था। श्री माधव राव आश्रम के अन्य सदस्यों के साथ उनकी सेवा में लगे रहते थे। बीमारी के कारण नागपुर से श्री अमिताभ महाराज जी को भी बुला लिया गया। सारगाछी आते ही श्री अमिताभ जी को लगा कि माधव राव जी की दीक्षा अभी तक नहीं हुई है। श्री माधव राव जी को घर से निकाल कर सारगाछी आश्रम भेजने में उनका ही हाथ अधिक था। इस हेतु 9 जनवरी, 1937 को श्री अमिताभ जी ने श्री बाबा जी (श्री स्वामी अखण्डानन्द जी) से निवेदन किया कि, "माधव के माता-पिता वृध्द हैं और उनके घर में कोई अन्य कमाने वाला, गृहस्थी सँभालने वाला भी नहीं है। अतः उनकी दीक्षा शीघ्र हो जाए और नागपुर जाकर उन्हें वकालत करने की अनुमति भी दी जाए।" इसके पहले भी श्री स्वामी राघवानन्द जी माधव राव जी की दीक्षा के लिए श्री बाबा जी से अनुरोध कर चुके थे। पर उनका उत्तर था, "अभी नहीं, अभी नहीं"। परन्तु श्री अमिताभ जी के अनुग्रह पर श्री बाबा जी ने कहा "श्री श्री ठाकुर जी की अनुमति मिलते ही गोलवलकर की दीक्षा होगी" और भी आगे कहा कि "किन्तु वह वकील ही होगा, यह कौन कह सकता है?"