सारगाछी प्रस्थान
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
1936 के अन्त में श्री गुरुजी अपने माता-पिता, डॉ.हेडगेवार तथा मित्रों को बिना सूचित किये सारगाछी बंगाल, स्थित स्वामी अखण्डानन्द जी के आश्रम की ओर गुरु प्रसाद पाने के लिए चल दिये। सारगाछी आश्रम जाने की प्रेरणा श्री गुरुजी को स्वामी अमूर्तानन्द जी (अमिताभ महाराज) तथा स्वामी भास्करेश्वरानन्द जी ने दी थी। स्वामी जी ने ही पत्र व्यवहार द्वारा स्वामी अखण्डानन्द जी से श्री गुरुजी के लिए उनकी सम्मति प्राप्त की थी।
 
श्री गुरुजी के इस प्रकार सारगाछी चले जाने से डा. हेडगेवार को धाक्का लगना स्वाभाविक ही था। उनका मानस श्री गुरुजी को संघ कार्य से जोड़ना था। उनके घर में चलने वाली बैठकों में भी श्री गुरुजी के बारे में चर्चा होती थी। वहां पर गुरुजी की विद्वता और गुणों की प्रशंसा डाक्टर जी के मुख से सुनी जाती थी। उपहास अथवा आलोचना का एक शब्द भी डाक्टर जी के मुख से कभी नहीं निकला। उनका दृढ़ विश्वास था कि श्री गुरुजी अवश्य लौटेंगे और संघ कार्य में जुटेंगे (भिशीकर, च.प., वही, पृष्ठ 24-25)।
 
श्री गुरुजी के सारगाछी पहुंचने पर उनका परिचय श्री स्वामी नित्यानन्द जी महाराज से हुआ। सारगाछी आश्रम में गुरुजी नाम अज्ञात हो गया था। उन्हें सब लोग माधव नाम से ही जानते थे। गुरुजी ने आश्रम में प्रवेश किया और कुछ समय के लिए बाहरी दुनिया को वह भूल गये। गुरुजी की सेवा, एकाग्रता, साधना ही उनका जीवन बन गया था। माधव राव ने तन-मन से गुरु स्वामी अखण्डानन्द जी की सेवा प्रारम्भ की। आश्रम की सफाई से लेकर स्वामीजी के कपड़े धोने, बर्तन साफ करने आदि सभी प्रकार के कार्य उन्होंने किये। आश्रम में रह कर माधव राव हर प्रकार की कसौटी पर खरे उतरे। श्री गुरुजी के जीवन का यह अध्याय जितना आकस्मिक था, उतना ही रहस्यमय था। उनके आश्रम जीवन के विषय में जो कुछ भी जानकारी मिली, वह उनके गुरु बन्धु स्वामी अमिताभ महाराज से ही मिली।