श्री गुरुजी और सामाजिक समरसता
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
संकलनकर्ता: रमेश पतंगे
''जिस प्रकार किसी पेड़ के बढ़ते समय उसकी सूखी शाखाएँ गिरकर उनके स्थान पर नई-नई शाखाएँ खड़ी हो जाती हैं उसी प्रकार अपने समाज में भी एक समय विद्यमान वर्ण व्यवस्था में बदल कर अपने लिए आवश्यक नई रचना समाज करेगा । यह समाज की विकास प्रक्रिया का स्वाभाविक अंग है ।''
- श्री गुरुजी