अमृतवाणी
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
संकलनकर्ता: श्रीधर पराडकर
यह भारतीय राष्ट्रजीवन अर्थात् हिंदूराष्ट्र है। अपने समाज में नानाविध भेद, संप्रदाय, गुणावगुण रहने के उपरांत भी वह प्राचीन एकसूत्र राष्ट्रजीवन है। उसमें संस्कृति का समान सूत्र है। हृदय के सूक्ष्म संस्कारों का समीकरण, राष्ट्रीय जीवन को प्रेरणा देनेवाली जीवनशक्ति संस्कृति है। इस देश में अनादि काल से जो समाजजीवन रहा, उनमें अनेक महान् व्यक्तियों के विचार, गुण, तत्त्व, समाजरचना के सिध्दांत तथा जीवन के छोटे-छोटे सामान्य अनुभवों से जो जीवनविषयक एक स्वयंस्फूर्त स्वाभाविक दृष्टिकोण निर्माण होता है, वह सर्वसाधारण दृष्टिकोण, संस्कृति है। यह संस्कृति अपने राष्ट्र की जीवनधारणा है, विश्व की ओर देखने की पात्रता देनेवाली प्रेरणा-शक्ति है, एक सूत्र में गूँथनेवाला सूत्र है। भारत में आसेतु-हिमाचल यह संस्कृति एक है, उससे भारतीय राष्ट्रजीवन प्रेरित हुआ है। भारतीय राष्ट्रजीवन अर्थात् हिंदू राष्ट्रीयजीवन है।