श्रीगुरुजी का प्रारम्भिक जीवन
श्रीगुरुजी (हिंदी)   27-Oct-2017
- डा. कृष्ण स्वरूप सक्सेना
भारतवर्ष की अलौकिक दैदीप्यमान विभूतियों की श्रृंखला में श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर का राष्ट्रहित, राष्ट्रोत्थान तथा हिन्दुत्व की सुरक्षा के लिए किये गये सतत कार्यों तथा उनकी राष्ट्रीय विचारधारा के लिए वे जनमानस के मस्तिष्क से कभी विस्मृत नहीं होंगे। वैसे तो २०वीं सदी में भारत में अनेक गरिमायुक्त महापुरुष हुए हैं परन्तु श्रीगुरुजी उन सब से भिन्न थे, क्योंकि उन जैसा हिन्दू जीवन की आध्यात्मिकता, हिन्दू समाज की एकता और हिन्दुस्थान की अखण्डता के विचार का पोषक और उपासक कोई अन्य न था। श्रीगुरुजी की हिन्दू राष्ट्र निष्ठा असंदिग्ध थी।
 
उनके प्रशंसकों में उनकी विचारधारा के घोर विरोधी कतिपय कम्युनिस्ट तथा मुस्लिम नेता भी थे।
 
ईरानी मूल के डा. सैफुद्दीन जीलानी ने श्रीगुरुजी से हिन्दू-मुसलमानों के विषय में बात करते हुए यह निष्कर्ष निकाला,
"मेरा निश्चित मत हो गया है कि हिन्दू-मुसलमान प्रश्न के विषय में अधिकार वाणी से यथोचित मार्गदर्शन यदि कोई कर सकता है तो वह श्रीगुरुजी हैं।"
(शुक्ल भानु प्रताप, राष्ट्र, पृष्ठ ८९, ३०९-३१८, बका, राधोश्याम, श्री गुरुजी जीवन प्रसंग, भाग-२, पृष्ठ १४३-१५३)।
 
निष्ठावान कम्युनिस्ट बुध्दिजीवी और पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व वित्त मंत्री डा. अशोक मित्र के श्री गुरुजी के प्रति यह विचार थे, "हमें सबसे अधिक आश्चर्य में डाला श्री गुरुजी ने........उनकी उग्रता के विषय में बहुत सुना था ........किन्तु मेरी सभी धारणाएं गलत निकलीं ........ इसे स्वीकार करने में मुझे हिचक नहीं कि उनके व्यवहार ने मुझे मुग्ध कर लिया।" (भानु प्रताप शुक्ल, राष्ट्र, पृष्ठ १२)।
साभार - श्री गुरूजी जन्म शताब्दी अंक, विश्व संवाद केन्द्र पत्रिका, लखनऊ. 
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